बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी का खाता क्यों नहीं खुला? 5 बड़े कारण

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व में प्रशांत किशोर की पार्टी का खाता क्यों नहीं खुला? 5 बड़े कारण

Prashant kishor





बिहार की राजनीति हमेशा से मजबूत जातीय समीकरण, पुराने नेताओं और स्थापित पार्टियों पर आधारित रही है। इस माहौल में प्रशांत किशोर की नई पार्टी जन सुराज को काफी उम्मीदें थीं, लेकिन चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर जन सुराज का खाता क्यों नहीं खुल पाया। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं।


1. जन सुराज की जमीन पर पकड़ कमजोर थी

प्रशांत किशोर ने पूरे बिहार में पदयात्रा की, पर गांव-गांव में संगठन उतना मजबूत नहीं बन पाया जितनी जरूरत थी। कई बूथों पर कार्यकर्ता ही मौजूद नहीं थे। बिहार जैसे राज्य में अगर बूथ स्तर पर पकड़ नहीं हो तो वोट कन्वर्ट करना बहुत मुश्किल होता है।


2. पार्टी के पास बड़े और पहचान वाले चेहरे नहीं थे

नई पार्टी को कुछ ऐसे लोकप्रिय या प्रभावशाली नेताओं की जरूरत होती है जिन्हें लोग जानते हों। लेकिन जन सुराज ज्यादातर नए चेहरों के साथ मैदान में उतरी। इससे जनता में भरोसा नहीं बन पाया कि यह पार्टी चुनाव जीतने की स्थिति में है।


3. प्रशांत किशोर को नेता नहीं, रणनीतिकार माना जाता है

लोग PK को अभी भी एक चुनावी रणनीतिकार मानते हैं, नेता के रूप में नहीं। उनकी पहचान स्पष्ट नहीं थी कि वे किस विचारधारा के साथ राजनीति कर रहे हैं। विरोधी दलों ने भी यही नैरेटिव फैलाया कि PK प्रयोग कर रहे हैं, गंभीर नेता नहीं हैं। इससे वोटर कन्फ्यूज हुए।


4. RJD, JDU और BJP का मजबूत वोट बैंक

बिहार की पुरानी पार्टियों के पास अपना-अपना पक्का वोट बैंक है। RJD के पास यादव-मुस्लिम, JDU के पास कोइरी-कुर्मी और महादलित वोट, जबकि BJP का सदियों से ऊपरी जातियों में मजबूत समर्थन है। इस तगड़े सेट-अप के बीच नई पार्टी के लिए जगह बनाना आसान नहीं था।


5. चुनावी माहौल जन सुराज के पक्ष में नहीं गया

इस चुनाव में लोग बदलाव के मूड में नहीं थे। चुनाव मुख्य रूप से सरकार बनाम विपक्ष की लड़ाई बन गया। मीडिया कवरेज भी जन सुराज को उतनी नहीं मिली। जनता को लगा कि यह पार्टी जीत नहीं पाएगी, इसलिए लोग ‘वेस्टेड वोट’ से बचने के लिए स्थापित पार्टियों को ही वोट देते रहे।


निष्कर्ष

प्रशांत किशोर की पार्टी का खाता न खुलने के पीछे कई कारण हैं—कमजोर संगठन, बड़े नेताओं की कमी, PK की रणनीतिकार वाली छवि, पुराने दलों की मजबूत पकड़ और चुनावी लहर का उनके पक्ष में न चलना। अगर PK अगले चुनाव से पहले जमीनी स्तर पर अपना संगठन और नेतृत्व मजबूत कर लेते हैं, तो भविष्य में उनके लिए स्थिति बदल सकती है।

Santosh banjara

हेल्लो दोस्तो मेरा नाम संतोष बंजारा है। मेरी रूचि शायरी ,कविता लेखन में है मै अपने इस ब्लॉग के माध्यम से अपनी भावनाएं आपतक पहुंचाने की कोशिश करता हु अगर मेरा कार्य आपको अच्छा लगता है तो आप इसे लाइक करे।

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